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मंगलवार, 30 अक्तूबर 2007

चिदंबरम के बयान पर

देश में डालरों की वर्षा है
सेंसेक्स का तूफान है
अपनी अर्थव्यवस्था लेकिन परेशान है

(चिदंबरम के बयान पर)

रविवार, 28 अक्तूबर 2007

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शुक्रवार, 26 अक्तूबर 2007

मन रुकता नहीं कहीं

हमारे खेत की सोंधी खुशबू
तुम्हारे होने का सोंधी खुशबू
पछुआ के साथ जब मेरे गांव पहुंचती है

सरसों की पीली उजास
तुम्हारे होने की आस
पछुआ के साथ जब मेरे गांव पहुंचती है

जंगल की शाम
बिरहा की तान
पछुआ के साथ जब मेरे गांव पहुंचती है
तुम क्या हो, कौन हो, कहां हो
इसका जवाब बहुत आसान नहीं

शुगर स्टाक बहुत आकर्षक

बलरामपुर चीनी, कोठारी शुगर और केसीपी शुगर। कोठारी व केसीपी तो मार्च तक दोगुने हो जाएंगे।

मंगलवार, 23 अक्तूबर 2007

Hindi Blogs. Com - हिन्दी चिट्ठों की जीवनधाराशेयर बाजार अब भी खरीदी के लिए ठीक है। एचएफसीएल या कोठारी शुगर पर दांव लगाइए, दोगुना रिटर्न पीट सकते हैं।

शुक्रवार, 19 अक्तूबर 2007

शेयर बाजार - खरीदी का ठीक मौका

शेयर बाजार में करेक्शन का दौर है, बहाना चाहे जो हो। यह करेक्शन लंबे समय से अपेक्षित था। अलबत्ता, दिवाली पर पीटने के लिए लिवाली का अच्छा मौका बन रहा है। लेकिन बाजार में लघुअवधि में फायदा वही उठा पाते हैं जो हवा का रुख भांपने में सक्षम होते हैं। पूरा खेल यह है कि क्या आप इस बात का सटीक अनुमान लगा पाते हैं कि बाजार में बहुमत की धारणा क्या है। अगर हां, तो आप राजा हैं। दूसरा फैक्टर है डर और लालच। बाजार से फायदा उठाना है तो इऩ पर विजय पानी होगी।
खैर, शेयर बाजार में इस समय आशंकाओं का राज है। यह कितना गहरा है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाइए कि रिलायंस इंडस्ट्रीज व विप्रो के नतीजे भी इऩ पर काबू न कर सके।

मेरी बाई लिस्ट
1यूको बैंक (39 से नीचे खरीदें)
2 एचएफसीएल (22-23 पर लें)
3 टेलीडाटा (55 से नीचे)
4 कोठारी शुगर (12 पर लें)
5 बलरामपुर चीनी (50 पर आने का इंतजार कर लें)
6. केसीपी शुगर (18 के नीचे खरीदें)

कल फिर बात करते हैं।

नर्मदा


हमीं अस्त हमीं अस्त हमीं अस्त


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तुम्हारी

चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी
कभी किसी पल जब मन मचलता है
दिल ही दिल में बेचैन तड़पता है
खुद से निचोड़ कर जमाना
तेरी यादों के ढेर पर औंधा गिर पड़ता है

यह कविता मैने नहीं लिखी

कुछ बिखरे चांद कतरे
लुढ़कती लहरों पर सवार हैं जैसे
स्थिर, ध्यानमग्न, निश्चल
अपने बहते आसन पर
समयधारा पर सवार वैसे ही हम
हैं कायम वहीं, जहां थे
एहसासों से बंधी एक रचना में
न बिखरते, न सिमटते
क्योंकि यह जानते हैं हम
इस रचना के मध्य में है स्थित
वह धुरी
जिसपर पृथ्वी घूमती है.

गुरुवार, 18 अक्तूबर 2007

शायद तुम भी

चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी
बिखरा नहीं
कुछ बंधा नहीं
समय ठहरा था
लेकिन पृथ्वी नहीं
और मैं गुजर रहा था तुम्हारे साथ शाम के बसेरे से
और शायद तुम भी

ठहराव के पल
जिंदगी जितने खूबसूरत
उमस का मौसम
बारिशों सा हसीन
और मैं गुजर रहा था तुम्हारे साथ शाम के बसेरे से
और शायद तुम भी

स्पर्श का रोमांच
ध्वनि जैसा स्पंदित
स्पर्श का रोमांच
आकाश जितना अंतहीन
और मैं गुजर रहा था तुम्हारे साथ शाम के बसेरे से
और शायद तुम भी

कविता

अपनी दुनिया को दूर से देखना
उन जिए पलों की तहों में उतरना
उनसे बाहर निकलना
उन पलों को जीना जो अब तक अनजिए रहे
यानी अनजिए के पल
जिए का तो कोई अगला पल होता नहीं

सोमवार, 8 अक्तूबर 2007

मार्केट लुढ़का

आज स्टाक मार्केट में जबरदस्त गिरावट है। जिस तरह की राजनीतिक परिस्थितियां बन रही हैं, लगता है कि मार्केट अभी और नीचे जाएगा। इसलिए यह खरीदी का अच्छा समय है लेकिन इंतजार करना चाहिए १७००० से नीचे जाने का।

शनिवार, 6 अक्तूबर 2007

अशोक वाजपेयी की एक कविता

जितना मैं सड़क के बीहड़पन
बत्तियों के ऊपर के अँधेरे
पेड़ के झुकाव और बादल के रंग को
स्वीकार कर लेता हूँ-
उतना, सिर्फ उतना तुम्हे अपना प्यार देता हूँ।
-अशोक वाजपेयी

यह पूरी ही नहीं हो पाई

जिनसे मोहब्बत नहीं होती
उनके साथ सफ़र बहुत सीधा और आसान होता है
भले ही रास्ता पहाड़ी हो
भले ही बारिशों ने उसे रपटीला बना दिया हो
भले एक छाते में ही सिर क्यों न छिपाएं हों
कोई फर्क नही पडता.

कच्चे बादाम का स्वाद
कच्चे अखरोट को हाथ पर घिसने का मजा
बारिश मे टपकते ढाबे मे खाने का सुख...

यह कविता मैने नहीं लिखी

तेरी मोहब्बत में यारा, लुत्फ़ है इबादत का,
कुदरत की जुबां बोलता है, मजमून तेरे ख़त का.

मस्त सबा के झोंके लिपट गए जो मुझसे,
प्रेम की गर्म बूंदे झड़ गईं फलक से,
छोटा-बड़ा इशारा समूची कायनात का,
दे गया पैगाम पिया तेरी मोहब्बत का.

तेरी मोहब्बत में यारा, लुत्फ़ है इबादत का,
कुदरत की जुबां बोलता है, मजमून तेरे ख़त का

मैं चाहता हूं

मैं चाहता हूं
तुम्हारे साथ किसी ऊंचे पहाड़ से चिल्लाऊं
मैं चाहता हूं
तुम्हारे साथ जंगल एक्सप्लोर करूं
मैं चाहता हूं
तुम्हारे साथ नदी किनारे बैठ पानी का गीत सुनूं
मैं चाहता हूं
तुम्हारे साथ खिलते फूलों को देखूं
आकाश के तारे गिनूं
और अपना एक तारा बनाऊं जिसे हर रात हम-तुम साथ-साथ खोजें
मैं यह कुछ भी नहीं करता
क्योंकि तुम मेरे बाजू में नहीं हो

मैं क्या

पूरी ईमानदारी से कहूं तो मैं बहुत से चेहरों वाला आदमी था। ये चेहरे बढ़ते रहे।....वास्तव में मैं कौन था मैं केवल दोहरा सकता हूं, मैं बहुत से चेहरों वाला आदमी था। --मिलान कुंदेरा के एक उपन्यास से

पता नहीं हर आदमी बहुत से चेहरों वाला होता है या नहीं, लेकिन मैं तमाम चेहरों के साथ हूं। और हर चेहरे के साथ भरसक ईमानदारी या कहें पूरी ईमानदारी। चाहें वह पुत्र का चेहरा हो, भाई का हो, प्रेमी का हो, मित्र का हो, पिता का हो या फिर प्रोफेशनल चेहरा हो। ये तमाम चेहरे एक में कनवर्ज करें, इस कोशिश के साथ। लेकिन लगता है मैथ्स की तरह जिंदगी में भी कई सीक्वेंश ऐसी होती हैं जो अनंत में जाकर कनवर्ज होती होंगी। पता नहीं।
चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ीPromote Your Blog
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