साक्षरता का प्रतिशत अपने देश में तेजी से बढ़ रहा है और आकड़े देखकर हम खुश हो रहे हैं कि हमारा देश नालेज इकोनामी बनने की राह पर तेजी से आगे बढ़ रहा है। लेकिन इस ढोल की आवाज पर न जाकर जरा इसके अंदर झांके-
मैं छोटा था, एक सुदूर गांव में रहता था। प्रौढ़ शिक्षा का अभियान चलाया जा रहा था उस समय। मेरे गांव में भी प्रौढ़ शिक्षा की किरण पहुंची एक लालटेन के साथ और उस लालटेन को रखने वाले प्रौढ़ शिक्षक को उसके लिए किरोसिन भी मिलता था। लेकिन वह लालटेन उस प्रौढ़ शिक्षक के घर पर ही जलती रही, सरकार किरोसिन देती रही और साथ में पढ़ाने के लिए कुछ किताबें और मानदेय भी। लेकिन मैने कभी अपने गांव में कोई कक्षा लगते नहीं देखी। रिकार्ड में सबकुछ ठीक था। इसी तरह पूरे देश में चला होगा और रिकार्ड बन गए होंगे। इस अभियान के बाद साक्षरता के आकड़े जबरदस्त रहे।
आजकल सर्वशिक्षा अभियान चल रहा है। इसमें भी ऐसा ही है। जिन लोगों को गुरूजी बनाया जा रहा है, उनसे नियुक्ति के लिए घूंस ली जा रही है। नेता खुश और अफसर मस्त, सर्वशिक्षा अभियान से और देश भी उत्साहित कि सब लोग पढ़े लिखे होते जा रहे हैं। यकीन मानिये अगले पांच-छह साल में जो आकड़े आएंगे, वे देश को सर्वाधिक शिक्षित आबादी वाले राष्ट्रों की कतार में खड़ा कर देंगे। हम आप देखते रहेंगे।
सोमवार, 12 नवंबर 2007
ग्रेजुएट्स रोजगारयोग्य ही नहीं
ह्यूमन रिसोर्स एंड स्टाफिंग एजंसी टीमलीज सविर्सेज की रिपोर्ट में कहा गया है कि 90 फीसदी भारतीय युवा रोजगार के लायक नहीं हैं। इसकी इंडिया लेवर रिपोर्ट-2007 में कहा गया है कि भारत में 90 फीसदी जाब्स स्किल बेस्ड हैं जो खेती, मत्स्य पालन, निर्माण आदि क्षेत्रों में निकलते हैं। ग्रेजुएट होने वाले 90 फीसदी युवाओं की जानकारी सिर्फ किताबी होती है और इसीलिए उनकी रोजगारयोग्यता नहीं होती। नतीजा यह होता है कि ये लोग घटिया जाब्स में जाते हैं और वह बहुत कम सेलरी पर। भारत में सामान्य ग्रेजुएट की सालाना औसत सेलरी 75000 रुपए है। जानकारों का कहना है कि यही वजह है भारत की प्रति व्यक्ति आय निचले स्तर होने का जबकि विकास दर ऊंची है। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि यह हाल रहा तो भले ही भारत दुनिया के अमीर देशों को पीछे छोड़ दे लेकिन यहां का आम जीवन स्तर कभी भी अमेरिका या यूरोप जैसा नहीं हो सकता है।
रिपोर्ट का कहना है कि यदि भारत यदि इस स्थिति को रिपेयर करना चाहे तो अगले दो साल में 4,90,000 करोड़ रुपए की जरूरत होगी यानी जीडीपी का 10 फीसदी। अभी इसका सिर्फ 25 फीसदी ही फंड इसके लिए दिया जा रहा है। नतीजा यह है कि ये पैसे भी कुएं में जा रहे हैं।
रिपोर्ट का कहना है कि यदि भारत यदि इस स्थिति को रिपेयर करना चाहे तो अगले दो साल में 4,90,000 करोड़ रुपए की जरूरत होगी यानी जीडीपी का 10 फीसदी। अभी इसका सिर्फ 25 फीसदी ही फंड इसके लिए दिया जा रहा है। नतीजा यह है कि ये पैसे भी कुएं में जा रहे हैं।
यूको बढ़ने लगा, एचपीसीएल भी शार्ट टर्म में भागेगा
यूको बैंक आज 49 से ऊपर पहुंचा और अब उसे रोकने वाला कोई नहीं होगा। 50 से नीचे पकड़ लीजिए, इसके बाद मौका नहीं मिलेगा।
एचपीसीएल 260 पर पकड़िये और शुक्रवार तक निकालने का मौका मिल जाएगा।
एचपीसीएल 260 पर पकड़िये और शुक्रवार तक निकालने का मौका मिल जाएगा।
मरना हो तो अनायास
मरना हो तो अनायास, जीना हो तो बिना दीनता के
तुम कुछ कहते हो, मैं कुछ और सोचता रहता हूं। लेकिन तुम्हारी हर बात का जवाब देते हुए। तुमसे बात करते समय मेरी आंखों के सामने तिरता रहता है कि कैसे मैने तुमको अर्न किया है। लगता है कल की बात हो लेकिन 22 बरस हो गए। तुमको पहली बार बाटनी की सीढ़ियों पर देखा था। कैंपस का मेरा पहला दोस्त तुमको जानता था और वह तुमसे कोई बात कर रहा था और मैं उसके साथ था। मेरा मन हो रहा था कि मैं भी तुमसे कुछ बात करूं। हमारे-तुम्हारे बीच कुछ भी कामन नहीं था कि मैं कोई बात कर सकने की स्थित में अपने को ला पाता। तारीख मुझे अच्छे से याद नहीं। वह फरवरी का महीना था। लखनऊ में फरवरी का महीना कुछ अलग होता है। कैंपस में अकसर मैं तुमको तलाशता रहता, कभी तुम दिखतीं और अकसर नहीं। दिमाग तर्क करता कि कहां तुम और कहां वो। मेरा परिवेश और तुम्हारा परिवेश, बाहर से कहीं कोई साम्य नहीं। होली का मौसम था। तभी कैंपस में खबर फैली कि इकोनोमिक्स के डा. माथुर का आईटी पर एक्सीडेंट हो गया। मैं उनको नहीं जानता था, दोस्तों की बातों से पता चला कि वे तुम्हारे पिता हैं।
तुम कुछ कहते हो, मैं कुछ और सोचता रहता हूं। लेकिन तुम्हारी हर बात का जवाब देते हुए। तुमसे बात करते समय मेरी आंखों के सामने तिरता रहता है कि कैसे मैने तुमको अर्न किया है। लगता है कल की बात हो लेकिन 22 बरस हो गए। तुमको पहली बार बाटनी की सीढ़ियों पर देखा था। कैंपस का मेरा पहला दोस्त तुमको जानता था और वह तुमसे कोई बात कर रहा था और मैं उसके साथ था। मेरा मन हो रहा था कि मैं भी तुमसे कुछ बात करूं। हमारे-तुम्हारे बीच कुछ भी कामन नहीं था कि मैं कोई बात कर सकने की स्थित में अपने को ला पाता। तारीख मुझे अच्छे से याद नहीं। वह फरवरी का महीना था। लखनऊ में फरवरी का महीना कुछ अलग होता है। कैंपस में अकसर मैं तुमको तलाशता रहता, कभी तुम दिखतीं और अकसर नहीं। दिमाग तर्क करता कि कहां तुम और कहां वो। मेरा परिवेश और तुम्हारा परिवेश, बाहर से कहीं कोई साम्य नहीं। होली का मौसम था। तभी कैंपस में खबर फैली कि इकोनोमिक्स के डा. माथुर का आईटी पर एक्सीडेंट हो गया। मैं उनको नहीं जानता था, दोस्तों की बातों से पता चला कि वे तुम्हारे पिता हैं।
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