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शुक्रवार, 9 नवंबर 2007

चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी
अखाड़े का उदास मुगदर पर एक पोस्ट पर प्रदर्शित टिप्पणियों के जवाब में
मिहिरभोज और अनुनाद सिंह जी,
सही और तार्किक बातों को फासिस्ट ताकतें हमेशा इमोशन से ढंकती आई हैं। सीधे-सादे लोग उन इमोशंस में बहकर इन ताकतों के पीछे खड़े हो जाते हैं, बिना यह समझे कि वे कितना बड़ा अपराध कर रहे हैं। इन सीधे-सादे लोगों की गलती नहीं होती क्योंकि वे सरल रेखा में ही चीजों को देखते हैं। और इसी ट्रिक से कभी हिटलर, कभी मुसोलनी, कभी जियाउलहक, कभी मुशरर्फ और कभी मोदी खड़े होते हैं एक बड़े स,े खोल के साथ। यह खोल फूला होता है इन्हीं सीधे-सादे लोगों के सपोर्ट की हवा से। इसमें ठोस कुछ नहीं होता और यही वजह है कि जब इस खोल की हवा निकलती है तो कुछ बचता नहीं है। आप लोग तो पढ़े-लिखे लगते हैं, इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं यानी देश के उन चुनिंदा लोगों में से हैं जिनपर देश को नए जमाने में प्रगति की राह पर ले जाने की जिम्मेदारी आयद है। लेकिन उम्मीद कम ही नजर आती है। खैर, सबको हक है अपनी-अपनी बात रखने का और अपना-अपना पाला तय करने का लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इतिहास ने भी हिटलर के समर्थकों को भी फासिस्ट ही कहा, इनमें बहुत से लोग आप जैसे भले और सीधे-सादे भी रहे होंगे।
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