Google

बुधवार, 21 नवंबर 2007

त्रिलोचन की कविता : अपना गला फंसाकर मैं भर पाया

संशय कर। संशय कर। संशय कर। संशय से
तू जीवन का प्रखर सत्य पाएगा। पट्टी
आंखो पर विश्वास की न ले। जग में टट्टी
ओट शिकार खेलने वाले मत्त विजय से
बिचर रहे हैं, मृग अर्धावलीढ कुश भय से
गिरा गिरा कर भाग रहे हैं। तबियत खट्टी
आज अहिंसा की है और शांति की सट्टी
मंद पड़ रही है लक्ष्य वेध कर, भढ़ चल नय से।

कल जो कहता था ईमान नहीं बेचूंगा,
वह चुपके ईमान बेचकर घर आया है,
क्या करता; परिजन हैं, संतति है, जाया है!
मन को समझा दिया, और कब तक खेंचूंगा
इनको अपने पीछे, अधिक नहीं मैं दूंगा।
अपना गला फंसा कर मैने भर पाया है।

-त्रिलोचन
चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ीPromote Your Blog
Powered by WebRing.
Powered by WebRing.