
जंगल में गुम गए बछड़े सा वह भटक रहा है। कभी चारे की तलाश में तो कभी पानी की तलाश में और कभी सिर्फ इसलिए कि वह कहां जाए। चंचलता भी उतनी ही और आकुलता भी। कितने कूल मिले और कितने शूल, गिनती नहीं लेकिन अब तक न वह कूल मिला और न वह शूल जिसकी तलाश उसे है।
ऐसा सबकुछ जो कहा गया और वह भी जो कहने से रहता गया