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बुधवार, 14 नवंबर 2007

अवधी बंदना

अवधी बोली का कोई जवाब नहीं है। हमहूं अवधी वाले हन। हमका याक कबिता यादि आवति है वंशीधर शुक्ल की। हमार मन कहिसि तुम सबका सुनाई। तौ लेउ आनन्द-

अब जिउ मां धरु धीर, राम की प्यारी अवधी बोली
बारह जिला अवध के ब्वालें और अगरा के आठ
रीवां, विंध्य, अमरकंटक, से छत्तिसगढ़ लौं पाठ
बुंन्देलिन अवधी की चेली, कनवज वाली बांदी
ब्रजभाषा सबकी मुंहचुमनी, भोजपुरी उदमादी
तुइ पर मस्त गंवार गंवारिन, हंसिहंसि करैं चबोली।
अब जिउ मां धरु धीर, राम की प्यारी अवधी बोली।

तोर सब्द उर्दू अपनाइस, अंगरेजी उरु कीन्हिंस
बोली खड़ी बुलंदशहर की, दांते अंगुरी दीन्हिस
देखि प्रवाह चरित का चित्रण छन्द, गीत, धुनि धारा
दुनिया भर की सगरी बोली, जोरि न सकीं अखारा
तोरी नीति, कहावत, कबिता, जग की करैं, ठठोली।
अब जिउ मां धरु धीर, राम की प्यारी अवधी बोली।

कजरी, ठुमरी, बारामासा, बेला, बिरहा, कहरा
लहचारी, निरवाही, सोहर, पचरा, भजन, टहकरा,
पंडाइन, माधवा गर्जना, आल्हा, गोपीचंदा
पाटन, टूमै, बरवा, बरुवा, बिबिध मंत्र औ छंदा
सबै गीत रस तोरे अनुचर, तुइ सबसे अनमोली।
अब जिउ....

कलकत्ता, कश्मीर, सिंधु, लंका लौं तोरि दुहाई
कटनी, सागर, नागपूर मां, तोरिय है बपदाई
यहिते कृष्णायन के लेखक तोरइ लिहिन सहारा
महाकाब्य है निरस न जब लैं, तोरि होय ध्रुवधारा
सब भाखन का शासन पालिसि, तुइका जनता भोली।
अब जिउ....

तोरे कमर कमर कसे बिन तोरेइ तृन बीनिस ब्रजभासा
बंगला, उड़िया, मारवाड़, बोलिन का बनी तमासा
तुहिका सीख का देश भरे मां, निरभय बोलै चालै
तोरे व्यंग, कटाक्ष, कटीले, सुने जमाना हालै
त्वहे आदि हिन्दी की दुनियां की, चंद्रोदय की गोली
अब जिउ...

जौन बात चाहै जो लेखक, जस की तस लिख डारैं
औंरा लगै न हर्र फटकरी, च्वाखा रंग निखारै
सूर, कबीर, रहीम आदि कबि, लिखिन तोरि गुनगाथा
तुलसी की रामाइन पर, सब जगतु झुकाइस माथा
अब सिर छत्र धारि कै बिचरौ, सब बोलौ यह बोली
अब जिउ....

(रचनाकाल 1952)

मेरे यारों

ब्लागवाणी पर पाश की कविता का जिक्र देखा। पाश मेरे भी पसंदीदा कवि रहे हैं और मैने कैंपस दिनों में उनकी कविताओं के 1000 पोस्टर तो बनाए ही होंगे। एक कविता मैं यहां दे रहा हूं-

मेरे यारों, हमारे वक्त का इतिहास
बस इतना ही न रह जाए
कि हम धीरे-धीरे मरने को ही
जीना समझ बैठे थे.

त्रिलोचन की दो कविताएं

पहली कविता


उनका हो जाता हूँ

चोट जभी लगती है
तभी हँस देता हूँ
देखनेवालों की आँखें
उस हालत में
देखा ही करती हैं
आँसू नहीं लाती हैं
और
जब पीड़ा बढ़ जाती है
बेहिसाब
तब
जाने-अनजाने लोगों में
जाता हूँ
उनका हो जाता हूँ
हँसता हँसाता हूँ।


दूसरी कविता



आज मैं अकेला हूँ
(1)
आज मैं अकेला हूँ
अकेले रहा नहीं जाता।
(2)
जीवन मिला है यह
रतन मिला है यह
धूल में
कि
फूल में
मिला है
तो
मिला है यह
मोल-तोल इसका
अकेले कहा नहीं जाता
(3)
सुख आये दुख आये
दिन आये रात आये
फूल में
कि
धूल में
आये
जैसे
जब आये
सुख दुख एक भी
अकेले सहा नहीं जाता
(4)
चरण हैं चलता हूँ
चलता हूँ चलता हूँ
फूल में
कि
धूल में
चलता
मन
चलता हूँ
ओखी धार दिन की
अकेले बहा नहीं जाता।

बोधिसत्व द्वारा 5:24 AM पर Jul 18, 2007 को पोस्ट किया गया
ये कविताएं मैने बोधिसत्व के विनय पत्रिका ब्लाग से ली हैं
चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ीPromote Your Blog
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