मैने त्रिलोचन का अपमान मत करो यारों-2 में उनकी रचनाओं की रायल्टी को लेकर बात की थी। किन्हीं बेनामी जी ने आज उस पोस्ट पर अपनी टिप्पणी में जो जानकारी दी, वह वाकई बहुत निराशाजनक है। लेकिन बेनामी जी ने जो तल्ख भाषा अनुनाद सिंह जी के लिए इस्तेमाल की, उससे लगता है कि वे भी उसी कथित जनवादी लिबरेशन वाले हैं जो अपने हीरोज का इस्तेमाल करना जानते हैं लेकिन उनके लिए लड़ना नहीं।
बेनामी ने कहा…
त्रिलोचन जी की समस्त रोयल्टी की राशि पान्च सौ रुपया सालाना है। अनुनाद सिन्ह जी, हिन्दी भाषा के महान लेखको की आर्थिक दशा को क्रिपया जानिये। आपका वक्तव्य किसी क्रूर असान्स्क्रितिक रईस का वक्तव्य लगता है।
मेरे मन में सवाल यह उठ रहा है कि राजकमल जैसे प्रकाशन बाबा जैसे लोगों को बेचकर करोड़ों कमा रहे हैं, इस शोषण के खिलाफ जनवादी कब लड़ाई लड़ेंगे। अपने शोषण के खिलाफ भी खड़े हुआ जाए। सिर्फ जनता को गरियाते रहने से काम नहीं चलने वाला।
क्या बाबा त्रिलोचन, बाबा नागार्जुन जैसे जनकवियों की रचनाओं से शोषक प्रकाशक ऐसे ही करोड़ों कमाते रहते दिया जाएगा। मान लीजिए हमारे जैसे भ्रष्ट और लालची (जनवादियों ने हमें इन्हीं विशेषणों से नवाजा है) लोग और कुछ नहीं कर सकते तो कम से कम इस ब्लागजगत में तो एक कैंपेन चला सकते हैं, शायद कुछ असर हो और जनवादियों पर भी दबाव बने कि वे लोग ऐसे प्रकाशकों को छोड़ें (दिल्ली में जनवादियों की रोजीरोटी का अड्डा ये शोषक प्रकाशक भी हैं)।