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रविवार, 25 नवंबर 2007

त्रिलोचन का अपमान मत करो यारों-4

मैने त्रिलोचन का अपमान मत करो यारों-2 में उनकी रचनाओं की रायल्टी को लेकर बात की थी। किन्हीं बेनामी जी ने आज उस पोस्ट पर अपनी टिप्पणी में जो जानकारी दी, वह वाकई बहुत निराशाजनक है। लेकिन बेनामी जी ने जो तल्ख भाषा अनुनाद सिंह जी के लिए इस्तेमाल की, उससे लगता है कि वे भी उसी कथित जनवादी लिबरेशन वाले हैं जो अपने हीरोज का इस्तेमाल करना जानते हैं लेकिन उनके लिए लड़ना नहीं।
बेनामी ने कहा…
त्रिलोचन जी की समस्त रोयल्टी की राशि पान्च सौ रुपया सालाना है। अनुनाद सिन्ह जी, हिन्दी भाषा के महान लेखको की आर्थिक दशा को क्रिपया जानिये। आपका वक्तव्य किसी क्रूर असान्स्क्रितिक रईस का वक्तव्य लगता है।

मेरे मन में सवाल यह उठ रहा है कि राजकमल जैसे प्रकाशन बाबा जैसे लोगों को बेचकर करोड़ों कमा रहे हैं, इस शोषण के खिलाफ जनवादी कब लड़ाई लड़ेंगे। अपने शोषण के खिलाफ भी खड़े हुआ जाए। सिर्फ जनता को गरियाते रहने से काम नहीं चलने वाला।

क्या बाबा त्रिलोचन, बाबा नागार्जुन जैसे जनकवियों की रचनाओं से शोषक प्रकाशक ऐसे ही करोड़ों कमाते रहते दिया जाएगा। मान लीजिए हमारे जैसे भ्रष्ट और लालची (जनवादियों ने हमें इन्हीं विशेषणों से नवाजा है) लोग और कुछ नहीं कर सकते तो कम से कम इस ब्लागजगत में तो एक कैंपेन चला सकते हैं, शायद कुछ असर हो और जनवादियों पर भी दबाव बने कि वे लोग ऐसे प्रकाशकों को छोड़ें (दिल्ली में जनवादियों की रोजीरोटी का अड्डा ये शोषक प्रकाशक भी हैं)।

2 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

प्रस्ताव अच्छा है। होना चाहिए।

बेनामी ने कहा…

आपका सुझाव एकदम सही है लेकिन बजाय की जनवाद से परेशान होने के आप ही ये काम क्यों नही करते। करिए जुड़िए ये कर दीजिए फलां कर दीजिए...और आप बस ब्लॉग पर भाषण छांटिए...ऐसे ही चलेगा तो विशेषण नहीं संज्ञा बन जाएंगे...
पता नहीं जब कोई आपको हकीकत बता रहा है रॉयल्टी की तो आपको वो जनविरोधी और जनता को गरियाने वाला लग रहा है तो हे 'जनता' कोई पहल आप ही क्यों नहीं लेते...जब ब्लॉग पर एक अपील आपको पचती नहीं तो रॉयल्टी की अपील कैसे पचेगी...
जो आपके खिलाफ होगा वो लिबरेशन का होगा...आपकी इन बातों से तो लिबरेशन ही ज्यादा सही लग रहा है क्योंकि उसने एक पहल तो की है उसके जनरल सेक्रेटरी त्रिलोचन से मिले...कहीं फोटो भी दिखा था...और कौन से राजनीतिक दल के प्रमुख किसी साहित्यकार से मिलने जाते हैं...
टेलीविजन की तरह एसएमएस पोल कराकर दुनिया का मन नहीं जिता जाता।
एक तो विरोधाभाषी सवाल जैसे कोई ये सवाल पूछकर पोल कराए कि
क्या अब आप अपनी पत्नी को नहीं पिटते...अगर हां में जवाब दिया तो भी मुश्किल ना में दिया तो भी...
अब सवाल पर सवाल उठते हैं जागिए...

चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ीPromote Your Blog
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