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शनिवार, 6 अक्टूबर 2007

यह कविता मैने नहीं लिखी

तेरी मोहब्बत में यारा, लुत्फ़ है इबादत का,
कुदरत की जुबां बोलता है, मजमून तेरे ख़त का.

मस्त सबा के झोंके लिपट गए जो मुझसे,
प्रेम की गर्म बूंदे झड़ गईं फलक से,
छोटा-बड़ा इशारा समूची कायनात का,
दे गया पैगाम पिया तेरी मोहब्बत का.

तेरी मोहब्बत में यारा, लुत्फ़ है इबादत का,
कुदरत की जुबां बोलता है, मजमून तेरे ख़त का

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