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शनिवार, 6 अक्तूबर 2007

मैं क्या

पूरी ईमानदारी से कहूं तो मैं बहुत से चेहरों वाला आदमी था। ये चेहरे बढ़ते रहे।....वास्तव में मैं कौन था मैं केवल दोहरा सकता हूं, मैं बहुत से चेहरों वाला आदमी था। --मिलान कुंदेरा के एक उपन्यास से

पता नहीं हर आदमी बहुत से चेहरों वाला होता है या नहीं, लेकिन मैं तमाम चेहरों के साथ हूं। और हर चेहरे के साथ भरसक ईमानदारी या कहें पूरी ईमानदारी। चाहें वह पुत्र का चेहरा हो, भाई का हो, प्रेमी का हो, मित्र का हो, पिता का हो या फिर प्रोफेशनल चेहरा हो। ये तमाम चेहरे एक में कनवर्ज करें, इस कोशिश के साथ। लेकिन लगता है मैथ्स की तरह जिंदगी में भी कई सीक्वेंश ऐसी होती हैं जो अनंत में जाकर कनवर्ज होती होंगी। पता नहीं।

1 टिप्पणी:

VIMAL VERMA ने कहा…

भाई मिलान कुन्देरा की बात अद्भुत लगती है.. और साथी, आपके विचाए भी भिन्न नही है, वैसे आप लिखिये अच्छा है कम से कम जो भी आपकी सोच है उसे कागज़ पर उतारिये ज़रूर... मै भी लिखने से घबराता था तो मैने शुरुआत की टिप्पणियों से आज भी कचरा लिखता हूं, जो लिखा हैं उनसे कोई प्रतिस्पर्धा नही है, जो मन मे आए लिखिये उसे तो पढा तो जायेगा.. लगे रहें

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