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शुक्रवार, 26 अक्टूबर 2007

मन रुकता नहीं कहीं

हमारे खेत की सोंधी खुशबू
तुम्हारे होने का सोंधी खुशबू
पछुआ के साथ जब मेरे गांव पहुंचती है

सरसों की पीली उजास
तुम्हारे होने की आस
पछुआ के साथ जब मेरे गांव पहुंचती है

जंगल की शाम
बिरहा की तान
पछुआ के साथ जब मेरे गांव पहुंचती है

3 टिप्‍पणियां:

आलोक ने कहा…

खुश जी,
पछुआ, उजास - इन दो शब्दों के अर्थ बताएँ तो कविता को फिर से पढ़ कर आनंद लूँ।

आलोक

खुश ने कहा…

पछुआ - पश्चिम से बहने वाली हवा
उजास - उजाला

आलोक ने कहा…

धन्यवाद खुश जी।

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