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गुरुवार, 18 अक्तूबर 2007

कविता

अपनी दुनिया को दूर से देखना
उन जिए पलों की तहों में उतरना
उनसे बाहर निकलना
उन पलों को जीना जो अब तक अनजिए रहे
यानी अनजिए के पल
जिए का तो कोई अगला पल होता नहीं

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