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रविवार, 9 दिसंबर 2007

त्रिलोचन चलता रहा

जून, 1995. दिल्ली

मंडी हाउस पर नोएडा जाने वाली चार्टर्ड बस में त्रिलोचन

त्रिलोचन को देखा
पकी दाढ़ी
गहरी आंखें
चेहरे पर ताप
हाथ में झोला
चुपचाप खड़े थे बस के दरवाजे पर

ऐ ताऊ
पैसे दे

ऐ ताऊ
पीछे बढ़ जा, सीट है बैठ जा

जैसे प्रगतिशील कवियों की ऩई लिस्ट निकली थी
और उसमें त्रिलोचन का नाम नहीं था
उसी तरह इस कंडक्टर की बस में
उनकी सीट नहीं थी

सफर कटता रहा
त्रिलोचन चलता रहा
संघर्ष के तमाम निशान
अपनी बांहों में समेटे
बिना बैठे
त्रिलोचन चलता रहा

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