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शनिवार, 1 दिसंबर 2007

नंदीग्राम - सिटीजंस रिपोर्ट- आम बंगाली क्या सोचता है?

हमारे एक मित्र अभी बंगाल गए थे। जिस समय नंदीग्राम व कोलकाता गर्म था, वे वहीं थे। वह खुद बंगाली हैं और उनका काम कुछ ऐसा था कि वह कोलकाता के साथ-साथ कई दूसरे छोटे कस्बों में भी गए। उन्होंने वहां की घटनाओं को आब्जर्व किया, लोगों के मन व दिमाग को समझने की कोशिश की। मैं बता दूं कि मेरे ये मित्र न तो संघी हैं और न वाम या कांग्रेसी। ये सज्जन मूर्तिपूजक भी नहीं हैं। वह आज मिलने आए थे। उनसे मैने उत्सुकतावश बंगाल के हाल पूछे। जो बातें सामने आईं, वह मेरे लिए चौंकानेवाली हैं। अखबारों में और ब्लाग्स से जो कुछ जाना-समझा, या तो उसमें कुछ गड़बड़ है या फिर इन सज्जन के आब्जर्वेशंस में। यहां सब विद्वानों के सामने रख रहा हूं उनके निष्कर्ष -


1. कलकत्ता में जो तनाव फैला, वह बांग्लादेश से घुसपैठ कर आए सिमी के लोगों की साजिश थी।
2. ममता विकास विरोधी है और एक कम्युनिस्ट से लड़ने के लिए दूसरे कम्युनिस्टों (नक्सलियों) का सहारा ले रही है, मरेगी।
3. नंदीग्राम में जिस जमीन की लड़ाई चल रही है, वह छोटे किसानों की न होकर बड़ों की है और इश्यू बटाईदारों का हैं। इसमें छोटे किसान और खेतिहर मजदूर के नाम का इस्तेमाल किया जा रहा है।
4. लोगों के बीच एक राय यह बन रही है कि माकपा सरकार राज्य के लिए कुछ अच्छा करने जा रही है तो ये ताकतें उसे रोकना चाहती हैं। कोलकाता जैसे आईटी का एक बड़ा केंद्र बन रहा है, वैसे ही पूरा बंगाल उद्योगों को आकर्षित कर सकता है। लेकिन राजनीतिक स्वार्थ अड़ंगेबाजी कर रहे हैं।
5. लोग चाहते हैं कि सरकार जमीन मालिकों व उद्योगों के बीच न पड़े। यदि किसी को उद्योग के लिए जमीन चाहिए तो वह उद्योगपति सीधे किसान से निगोशिएट करे।
6. कम्युनिस्टों ने पहले ही सब गड़बड़ कर रखा था, अब जब कम्युनिस्ट सरकार कुछ अच्छा काम कर रही है तो दूसरे कम्युनिस्ट गड़बड़ कर रहे हैं।
7. ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी लोग माकपा का ही पक्ष लेते हैं, कहीं भी ममता या लिबरेशन का समर्थन नहीं है। कुछ लोग तो यहां तक कहते हैं कि पहले टाटा का मसला और अब नंदीग्राम, दोनों ही मामलों में पता नहीं कहां से आए लोग कान फूंक रहे थे।
8. एक और रोचक बात यह है कि जहां पहले शहरों में माकपा का विरोध रहता था, अब शहरों के लोग भी माकपा का पक्ष ले रहे हैं।

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