विवेक सत्य मित्रम के पोस्ट क्या गैर वामपंथी होना गुनाह है पर-
1.गैर वामपंथी होना या न होना गुनाह या पुण्य से जुड़ा नहीं है लेकिन इंसानियत की विचारधारा की बात करने वाले को यह सवाल शोभा नहीं देता। लगता है मित्रम जी करात, बुद्धदेव, वर्धन, नीलोत्पल बसु, आईसा, एसएफआई आदि से ही लेफ्ट की विचारधारा को समझते हैं। न तो दुनिया से लेफ्ट उठ रहा है और न इंसानियत की विचारधारा। वैसे दोनों एक-दूसरे के पर्याय ही हैं। इंसानियत की अगर कोई विचारधारा है तो वह बुद्ध-गुरू गोविंद सिंह-मार्क्स-लेनिन-माओ के रास्ते ही निकली है। नेपोलियन-जार-हिटलर-मुसोलिनी-गुरू गोलवलकर-बुश-लादेन-तोगड़िया-आडवाणी के रास्ते नहीं। सिर्फ लेफ्ट ही इंसान की बराबरी और उसके जीने की हक की बात करता है। बाकी तो अमीर बने रहने के लिए गरीबी बनाए रखने (इंसान के शोषण) की अनिवार्यता ही जताते हैं।
2. दुखद यह है कि अधकचरी समझ के चलते छल्लों-दुमछल्लों को लेफ्ट मानकर इस महान विचारधारा का आकलन किया जा रहा है।
3. आप कहते हैं कि आप कनफ्यूज्ड नहीं हैं लेकिन हैं आप भयंकर रूप से कनफ्यूज्ड। भारत के लेफ्ट ग्रुप्स के बारे में भी आपकी जानकारी अधकचरी है। किसी की सही आलोचना आप तब तक नहीं कर सकते जब तक आप उसे पूरी तरह से जान न लें। प्रकाश करात और दीपांकर भट्टाचार्य के अंतर को समझना ही पड़ेगा।
4. माफ करिएगा आपका यह ब्लाग बोगस वाम विरोधियों का अड्डा बनता नजर आ रहा है।
1 टिप्पणी:
तो आप ही बताएं यूरोप से नहीं उठ गया एशिया में कुछ बचा कुछ ढंग की जगह बताएं जहां बचा हो.सत्य है संस्कृति विरोधी कोई चीज कहीं कितने दिन चलेगी.यहां क्या सिर्फ हिंदु विरोध के अलावा किया क्या है लेफ्ट ने,
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