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शनिवार, 17 नवंबर 2007

आम आदमी को गरिया कर आएगा इनका समाजवाद-जनवाद

सूडो सेकुलर के बाद अब दुमछल्ला वामपंथ शीर्षक वाली मेरी पोस्ट पर झल्ला कर जनमत ब्लाग पर गालियों की बौछार ही कर दी गई। बहुत सारे सवाल दाग दिए और मुझ पर आरोपों की ऐसी बौछार कर दी गई जैसे मेरी इस पोस्ट से इनका जनवाद गायब हो जाएगा।

नहीं भाईसाहब, आप ही तय करेंगे दुमछल्ला कौन है और छल्ला कौन है? मैं न तो किसी राजनीतिक पार्टी का मेंबर हूं न कोई एक्टिविस्ट।न मैं आप लोगों जैसा छल्ला वामपंथी हूं और न सीपीआई-सीपीएम जैसा दुमछल्ला। (आप लोग एसएफआई को अपना दुश्मन ही मानते हो)। मैं तो आम आदमी हूं जिसके लिए आप लोग समाजवाद लाने का बीड़ा उठाए हुए हैं। आम आदमी को गाली देकर समाजवाद कैसे आएगा। क्या उस समाजवाद में मेरे जैसे आम आदमी की कोई जगह होगी, जो शेयर बाजार में कुछ पैसा लगातानहीं है लेकिन सोचता जरूर है कि एक दिन इतना पैसा हो जाए कि शेयर बाजार में लगा सके। माता-पिता, बेटा-बेटी और अपने बुढ़ापे की जरूरतें पूरी करने के लिए कुछ बचत कर लेता है और पीपीएफ आदि में जमा करता है। क्या यह सब करना आपके सपनों के समाज में गुनाह होगा और जो यह करेगा,क्या उसको देश बदर कर देंगे।
आपने जो जवाब दिया है, उससे तो यही लगता है कि आप आम आदमी को ढोर-डंगर ही समझते हैं।
आपने लिखा कि मैं भ्रष्ट जनवाद का नुमाइंदा हूं, ठीक कहा आपने आम आदमी को सभी राजनीतिक दल ऐसे ही देखते हैं भले ही फिर वो लिबरेशन के टैग वाले क्यों न हों।आपने मुझे अवसरवादी बाजार प्रेमी दुमछल्ला करार दे दिया। अवसर का फायदा उठाने में क्या गड़बड़ है। आपके लोग अवसरों का फायदा नहीं उठाते क्या, आपके लोग शेयर बाजार में पैसा नहीं लगाते क्या, आपके लोग दलालस्ट्रीट का बखान करने की नौकरी नहीं करते क्या। जां तक मैंने पता लगाया है कि जेएनयू के चुनाव विश्लेषण करने वाले सज्जन दलाल स्ट्रीट की आवाज बने हुए हैं। अब आप यह तो बताइए कि जनवादी दलाल स्ट्रीट किस पाले में है।
खैर जो भी हो, आप लोग सियासी लोग हैं, हमें जो चाहिए वह कहिए। हम तो मूली-घास हैं, कुछ सवाल उठा दें तो गालियों से नवाज दीजिए। लेकिन आपके लोग कुछ करते रहें पवित्र जनवाद के नाम पर, सब जायज है।

जनमत पर यह लिखा गया है-

जनवाद का 'दलाल स्ट्रीट'

जनमत पर जेएनयू के चुनावों का दिलीप मंडल ने एक विश्लेषण रखा। जिस पर जाहिर है कई प्रतिक्रियाएं होनी थी। लेकिन पहली प्रतिक्रिया आई किसी ‘खुश’का। एसएफआई की हार से तिलमिलाए ये सज्जन जा पहुंचे त्रिलोचन शास्त्री के लिए जारी जनमत की अपील तक। फिर उन्हे याद आया कि किन्ही अनिल रघुराज( ये किन्ही अनिल रघुराज उनके ब्लॉग के 'दोस्त लोग'में हैं..फिर ये किन्ही कैसे हुए!!?) ने भी लिबरेशन और कम्यूनिज्म के विरोध में कुछ लिखा है और उसके बाद ये अपनी समझ से इस राजनीति पर कई वार करते गए। उन्हे सबसे ज्यादा आपत्ति थी दुमछल्ले वामपंथ पर। चंद्रशेखर की मां को लेकर लिखे गए टिप्पणी से उलझते हुए वे सिर टकराने लगे। लेकिन जब इनके लेखन या ब्लॉग लीला का दौरा हुआ तो सामने आया कि ऐसे भ्रष्ट जनवाद के नुमाइंदे बाजार की समझ से त्रिलोचन और सही वामपंथ को तौलते हैं। टुकडे –टुकड़े में जन आंदोलनों की कमजोरियों और सचेत ढंग से प्रचारित अफवाहों के ये सौदागर मौका तलाशते हैं कि कैसे आम लोगों को सही मुद्दों और बातचीत से भटकाया जाय.. देखिए इस दुमछल्ले वामपंथी का लेखन...जैसा कि ये खुद दावा करते हैं ये कहीं नौकरी नहीं करते लिहाजा बाजार इनकी मजबूरी नहीं बल्कि पसंद है। ये पूरी तरह बाजार की बीमारी जानते हैं लेकिन त्रिलोचन की बीमारी जानने का इन्हे कोई रास्ता नजर नहीं आता। इस बाजार प्रेमी दुमछल्ला वाम की यही कहानी है यह अवसरवाद का सबसे घृणित प्रतिनिधि है। जब यह बाजार की बात कह रहा है तो नहीं लगता कि साथ में दुमछल्ले वाम का घोषणा पत्र लिख रहा है..



ये लिखते हैं...
"शेयर बाजार में करेक्शन का दौर है, बहाना चाहे जो हो। यह करेक्शन लंबे समय से अपेक्षित था। अलबत्ता, दिवाली पर पीटने के लिए लिवाली का अच्छा मौका बन रहा है। लेकिन बाजार में लघुअवधि में फायदा वही उठा पाते हैं जो हवा का रुख भांपने में सक्षम होते हैं। पूरा खेल यह है कि क्या आप इस बात का सटीक अनुमान लगा पाते हैं कि बाजार में बहुमत की धारणा क्या है। अगर हां, तो आप राजा हैं। दूसरा फैक्टर है डर और लालच। बाजार से फायदा उठाना है तो इऩ पर विजय पानी होगी।खैर, शेयर बाजार में इस समय आशंकाओं का राज है। यह कितना गहरा है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाइए कि रिलायंस इंडस्ट्रीज व विप्रो के नतीजे भी इऩ पर काबू न कर सके।

नोट- निवेश करने से पहले खुद पोढ़े हो लें। अपन की जिम्मेदारी नहीं है।"

मेरी बाई लिस्ट
1यूको बैंक (39 से नीचे खरीदें)
2 एचएफसीएल (22-23 पर लें)
3 टेलीडाटा (55 से नीचे)
4 कोठारी शुगर (12 पर लें)
5 बलरामपुर चीनी (50 पर आने का इंतजार कर लें)
6. केसीपी शुगर (18 के नीचे खरीदें)

अब आप ही तय करिए कि क्या ऐसे लालची व्यक्तित्व वाले ही तय करेंगे कि सही जनवाद और उसकी राजनीति क्या है और त्रिलोचन का कद कितना है...
मतलब यह हुआ कि शेयर बाजार में यदि किसी की रुचि हो तो वह लालची है। वह अवसरवाद का घृणित प्रतिनिधि है। मेरे जैसा आम आदमी जनवाद समझ ही नहीं सकता और न त्रिलोचन को समझ सकता है और न उनका कद सोच सकता है। उसको चंपा काले अच्छर नहीं चीन्हती कविता समझ में ही नहीं आ सकती। और न वह त्रिलोचन के अपमान को समझ सकता है। हम आप लोगों के लिए झुनझुने हैं। बजेगा तो काम का नहीं तो भाड़ में जाए और बोनस में दो-चार लात-घूंसे (गालियां) और। हां हम कैसे समझ सकते हैं, हम त्रिलोचन को शर्तों के साथ नहीं मानते हैं। हम उनको अछूत नहीं घोषित करते हैं।

रही बात त्रिलोचन की हारी-बीमारी जानने की तो त्रिलोचन तो जनता के कवि हैं लिबरेशन के नहीं और हम जैसी जनता उनका हालचाल जान ही लेगी, जनवादी लोगों को चिंता करने की जरूरत नहीं है। यदि हमारे जैसा आम आदमी बाबा के लिए कुछ करना चाह रहा होगा तो उसका ढिंढोरा नहीं पीटेगा। आपसे पूछने की भी जरूरत नहीं है।



लेकिन मुझे दुख इस बात का है कि मैने त्रिलोचन के लिए जनमत की दया की अपील और जेएनयू चुनाव पर विश्लेषण को लेकर जो सवाल उठाए और जिनसे ये लोग तिलमिलाए, उनका तो मुझे इनकी पोस्ट में जवाब ही नहीं मिला। मिलता भी क्यों जनवादी लोगों को शायद जनता के सवालों का जवाब देने की जरूरत ही नहीं। देश की राजनीति की यही विडंबना है, चाहें कांग्रेस हो या भाजपा, माकपा-भाकपा हो या लिबरेशन, जनता के प्रति जवाबदेही गायब है। इनके अपने चश्मे जिनसे ये दुनिया देखते हैं और

अपनी प्रजा यानी आम जनता
के मुद्दे हल करते हैं।


अंत में 3 सवाल और
1.मैं ब्लाग लिखूं तो ये लिबरेशन के जनवादी इसे लीला कहते हैं लेकिन इनका ब्लाग लिखना लीला नहीं है पवित्र जनवाद है?
2.ये लोग इतना क्यों डर गए कि मेरे ब्लाग के सारे लिंक भी तुरंत खंगाल डाले?
3.इन्होंने कहा कि मैंने अपनी समझ का इस्तेमाल टिप्पणी लिखने में किया है। भाई मैं तो अपनी समझ से काम लेता हूं, हो सकता है लोग उधार की समझ से काम चलाते हों (अब इसे उधार की कहें या लकीर की फकीरी कहें, लेकिन इनकी समझ है कहीं और से ही संचालित)? अपनी समझ का इस्तेमाल करना क्या भ्रष्ट और घृणित होने की निशानी है?

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