हर तरफ धुआं है
हर तरफ कुहासा है
जो दांतों और दलदलों का दलाल है
वही देशभक्त है
अंधकार में सुरक्षित होने का नाम है-
तटस्थता। यहां
कायरता के चेहरे पर
सबसे ज्यादा रक्त है।
जिसके पास थाली है
हर भूखा आदमी
उसके लिए, सबसे भद्दी
गाली है
हर तरफ कुआं है
हर तरफ खाईं है
यहां, सिर्फ, वह आदमी, देश के करीब है
जो या तो मूर्ख है
या फिर गरीब है
1 टिप्पणी:
अपनी शक्ल दिखाती कविता है भाई. आपका नाम जेहन में आ रहा है शायद हम मोहल्ले पर कुछ शब्दों का आदान प्रदान कर चुके है वाया विवेक सत्य मित्रम नंदीग्राम. खैर बरकरार रखिए आपसे असहमतियां अच्छी लगती हैं.
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