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बुधवार, 28 नवंबर 2007

मोहब्बतें - उनकी मोहब्बत बढ़ी और दुनिया से खुशी कम होती रही


ब्लाग के अखाड़े में उदास मुगदर की लवस्टोरीज देखकर मुझे लगा कि मैं भी कीबोर्ड भांज सकता हूं मोहब्बत के किस्सों पर। शुरू कर रहा हूं। मुगदर की तरह मैं 563 जैसा कोई नंबर तो नहीं तय कर पा रहा हूं लेकिन देखते हैं...



अलबामा में 53 साल पहले पैदा हुई थी, इसी माह की किसी तारीख को। उत्तरी अमेरिका के इस हिस्से में आज भी जातीय भावनाएं कायम हैं, तब तो वहां काले लोग अछूत ही माने जाते थे। वे बसों में पीछे ही बैठ सकते थे, उनके रेस्टोरेंट्स अलग थे। उसने भी सहा। सर्कस देखने गई तो बाहर कर दी गई, होटल में रूम नहीं मिला, यही नहीं, डिपार्टमेंटल स्टोर में कपड़े खरीदे तो उसे फिटिंग चेक करने के लिए ट्रायल रूम में नहीं स्टोररूम में जगह मिली (ट्रायलरूम में सिर्फ गोरे जा सकते थे)। 1963 में उसके साथ जो घटना हुई, आज तक नहीं भूली वह। कालों को निशाना बनाकर बमिंघम चर्च में हुए बम विस्फोट में उसकी दोस्त समेत चार काली लड़कियां मारी गईं। उसने भी धमाके देखे और सुने। वह कहती है, उस दृश्य और आवाज को मैं कभी न भूल पाऊंगी। लेकिन वह नागरिक अधिकारों के लिए लड़ने वाली इंसान न बन सकी। उसका पारिवारिक बैकग्राउंड कानफर्मिस्ट नेचर का था। उसने अपना ध्येय बनाया खूब मेहनत करना और गोरों से दोगुना बेहतर बनना। पिता ने मंत्र दिया कि व्यवस्था से टकराओ नहीं, मेहनत करो, आगे बढ़ो और व्यवस्था का फायदा उठाओ।
उसने यही किया। तीन साल की उम्र से फ्रेंच सीखना शुरू किया। स्केटिंग उसका पसंदीदा गेम था और बैले अपनी भावनाओं को विस्तार देने का साधन। वायलिन बजाना उसे अच्छा लगता था और वह चाहती थी अच्छी वायलिनवादक बने लेकिन इससे जीवनयापन मुश्किल था सो उसने इरादा बदला। जब यूनिवसिर्टी पहुंची, कोल्ड वार में रुचि बढ़ी और फिर सोवियत संघ पर एक लेक्चर सुना तो राह ही बदल गई। उसने मिलिटरी डाक्टराइन और चेकोस्लोवाकिया पर पीएचडी की और पहुंच गई स्टैनफोर्ड यूनिवसिर्टी में पढ़ाने। वहां वह रिपब्लिकन हो गई और मौका मिला अमेरिकी राष्ट्रपति को सोवियत मामलों पर सलाह देने का।
उसकी मुलाकात राष्ट्रपति के बेटे से हुई। दिन निकलते रहे। राष्ट्रपति के बेटे के सितारे बुलंद हुए और साथ ही उसके भी। उसने न शादी की और न मोहब्बत का इजहार (शायद)। हां एक बार गलती से राष्ट्रपति के बेटे को अपना हसबैंड जरूर बोल गई, जाने कैसे। लेकिन बुलंद सितारों के साथ ही शुरू हुई असफलताओं की कहानी। 9/11 से शुरू होकर यह सफर आज भी जारी है। अफगानिस्तान, इराक और अब ईरान इसी मोहब्बत की गर्माहट में झुलस रहे हैं और साथ में पूरी दुनिया।
वह बताती है कि जब मैं चार साल की थी, मेरे पिता ने मेरी एक फोटो ली थी जिसमें मैं सांताक्लाज की गोद में थी और यकीन करिए फोटो में मेरे चेहरे के भाव दूरियों वाले थे क्योंकि मैं कभी किसी गोरे के इतने करीब पहले कभी नहीं गई थी। लेकिन अब उसके चेहरे पर आश्वस्ति के भाव दिखाई देते हैं। आज भी वह अच्छी वायलिन बजाती है।

3 टिप्‍पणियां:

Pratyaksha ने कहा…

ये भी खूब रही ।

अभय तिवारी ने कहा…

मार्मिक..
अनोखी प्रेम कथा..

azdak ने कहा…

सही है बॉस ये है सही स्टोरीटेलिंग.. ह्यूमन टच और वाजिब मात्रा में सस्पेंस..माथे में सही जगह पर स्क्रू ड्राइवर की घुमाई..

चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ीPromote Your Blog
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