आजु लै यहु नाइ जानि पायेन कि हिंयां सुखु कौने बिरवा में लागत है, आराम कौने पेड़ मा उपजति है। जब कबहूं काम करति करति थक गयेन औ थकान मा नींद आइ गइ। भूंख लागि तौ कुछ खाय लिहेन, इंद्री शांत ह्वैगै। भोरहरे फिर वहै शुरू। थ्वार बहुत टेम मिला तौ अपने लैपटाप पर बइठ गयेन और जौन कुछ मन मा आवा लिख डारेन।
तौ हम बतुवाय रहेन रहय कि हमका नाइ पता कि सुखु कौने बिरवा मां लागत है। सुखु हम की का कही। रुपिया-पइसा होइ तव का सुख मिल जाति है। हम तौ नाइ मानित ई बात कैंह्यां। हमार सुखु के बिरवा तो हमरे गावैं मैह्यां छूटि गये। औ अब जहां रहित है हुआं दुखु केर जंगल आंय। दूरि-दूरि सुखु के बिरवा नाय देखात हैं। हमार मन अपने गांव गोआर मैंहैय बसति है। सुखु केर बिरवव हुंअंय हैं। द्याखव कब तक लिलार हमका हिया हुंआ टहिलावत है।
गुरुवार, 15 नवंबर 2007
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